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| Bhul Bhulaiya |Lucknow के नवाब आसफउद्दौला की इस भूलभुलैया में फंसे, तो घर जाने के लिए भी तरस जाओगे

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| Bhul Bhulaiya |Lucknow के नवाब आसफउद्दौला की इस भूलभुलैया में फंसे, तो घर जाने के लिए भी तरस जाओगे

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इमामबाड़े की शिल्पकला तो बेमिसाल है ही लेकिन इसके अलावा इसका एक और आकर्षण है भूल भुलैया। ये भूल भुलैया इमारत के तीन स्तरों के अंदर है। पूरी इमारत मेहराबदार दरवाज़ों, खिड़कियों और गलियारों पर खड़ी है। आप 45 सीढ़ियां चढ़कर एक आयताकार बालकनी में एक सकरे गलियारे में पहुंचते है। ये बालकनी मध्य इमारत की तरफ़ खुलती है। गलियारों के ऊपर बनी भूल भुलैया में कई संकरे और घुमावदार रास्ते हैं। दरअसल भूल भुलैया संकरे मार्गों और सुरंगों का एक ऐसा जाल है जिसमें कोई भी भ्रमित हो सकता है। यहां सीढ़ियां भी हैं जो अचानक अपनी दिशा बदल देती हैं, आप कभी ऊपर तो कभी नीचे आ जाते हैं।
वास्तुकला की पराकाष्ठा वाली भूल भुलैया की छत्त को खोखला बनाया गया ताकि छत्त का वज़न कम हो जाए और इमारत की दीवारे बिना सहारे के खड़ी रहें। छत्त पर सैंकड़ो दरवाज़े बनाये गये हैं जो आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और इस अद्भुत रचना को नाम दिया गया है...भूलभुलैया । ये शायद भारत की एकमात्र भूल भुलैया है। इमारत में कई तरह की बालकनियां और झरोखे हैं। इन्हें इस तरह से बनाया गया है कि दिन के समय भी यहां पर्याप्त रौशनी और हवा रहती है।


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22 Interesting Facts about Bara Imambara | बड़े इमामबाड़े के 22 आश्चर्यजनक तथ्य | UP Trip |

Bara Imambara, also known as Asfi Imambara is an Imambara complex in Lucknow, India built by Asaf-ud-Daula, Nawab of Awadh in 1784. Bara means big. This Imambara is the second largest after the Nizamat Imambara. In this video, we are going to tell you the top 22 interesting facts about Bara Imambara. So watch this video till the end to know all the interesting facts.

VIDEO GUIDE: HOW TO BOOK YOURSELF (UP)


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0:00 – Introduction
0:45 – #1 4 Raaste
1:31 – #2 1784
2:27 – #3 Urad Ki Daal
2:51 – #4 Deewaro Ke Kaan
3:46 – #5 Chor Darwaza
4:24 – #6 Darts
5:19 – #7 Khufiyan Gufayein
6:06 – #8 City View
6:39 – #9 Musafir Khaana
7:12 – #10 Real Ownership
7:40 – #11 Laung Lasun
8:04 – #12 Kaala Paani
9:07 – #13 Spy Camera
9:41 – #14 Hidden Treasure
10:47 – #15 Money Heist
11:36 – #16 Mar-E-Rasool
12:32 – #17 Asaf-Ud-Daula
13:28 – #18 Chinese Tray
14:21 – #19 Irani Tray
14:47 – #20 99 Names
15:04 – #21 Duplicate Crown
15:37 – #22 Kharbuja Hall
16:14 – Comment Contest


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|| Bada Imambara || Lucknow नवाब असफउद्दौला के आदेश से दिन में बनवाया जाता और रात में तोड़ा जाता था

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जिसे न दे मौला, उसे दे असफउद्दौला’

ये कहावत पुराने नवाबी लखनऊ की है। लखनऊ के लोग अपने उदार और दरियादिल नवाबों के बारे कुछ ऐसा ही कहा करते थे। अब लखनऊ में न तो नवाब हैं और न ही उनकी शान-ओ-शौक़त लेकिन जो बचा रह गया है वो हैं उनकी बनवाई गईं शानदार इमारतें। नवाबों के समय की इमारतों में सबसे शानदार इमारत है बड़ा इमामबाड़ा जो नवाब असफ़उद्दौला ने अकाल से लोगों को राहत पहुंचाने के मक़सद से सन 1784 में बनवाया था।

बड़ा इमामबाड़ा सैलानियों के लिये एक बड़ा आकर्षण है। इमामबाड़े की सबसे बड़ी ख़ासियत है उसका मुख्य सभागार। अमूमन सभागर खंबों पर टिके रहते हैं लेकिन यहां मेहराबदार पचास फुट ऊंची छत वाले सभागार में कोई खंबा नहीं है। ये अपने आप में विश्व के सबसे बड़े सभागारों में से एक है और बेमिसाल इंजीनियरिंग का एक नमूना है।
अवध के शाही ख़ानदान की शुरुआत होती है सआदत ख़ान बुरहान-उल-मुल्क (1680-1739) से जिन्हें मुग़ल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले ने 1722 में अवध का सूबेदार नियुक्त किया था। नवाबों की राजधानी पहले फ़ैज़ाबाद हुआ करती थी जो अयोध्या के पास है। नवाब का रिशता ईरान के सफ़वाबी राजवंश से था। वह निशापुर के रहनेवाले थे और वे शिया संप्रदाय से थे।

सन 1775 में नवाब असफ़उद्दौला ने फ़ैज़ाबाद के बजाय लखनऊ को अवध की राजधानी बनाया और इसके साथ ही शहर में सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विकास हुआ। नवाब असफ़उद्दौला को लखनऊ का आर्किटेक्ट जनरल माना जाता है। शहर को ख़ूबसूरत और वैभवशाली बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।

नवाब असफ़उद्दौला ने सन 1775 से सन 1797 के दौरान अपने शासनकाल में कई सुंदर महल, बाग़, धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष इमारतें बनवाईं थीं। ऐसा करने वाले वह पहले नवाब थे। उन्होंने मुग़ल वास्तुकला को टक्कर देने के इरादे से कई इमारतें बनवाईं और बहुत कम समय में लखनऊ को वास्तुकला की दुनिया में एक ऊंचे मुक़ाम पर पहुंचा दिया था।
असफ़उद्दौला की बनवाई गईं आरंभिक और सबसे बड़ी इमारतों में बड़ा इमामबाड़े को शुमार किया जाता है। ये इमारत पुराने शहर में इसे बनवानेवाले के सम्मान में बनवाई गई थी जिसे इमामबाड़ा-ए-असफ़ी के नाम से जाना जाता था। नवाब ने 1783-84 में पड़े भीषण अकाल में लोगों की मदद के लिये ये इमामबाड़ा बनवाया था। माना जाता है कि इसके निर्माण कार्य में 22 हज़ार लोगों को लगाया गया था।

नवाब ने आदेश दिया था कि निर्माण का काम सूर्यास्त के बाद रात भर चलेगा ताकि अंधेरे में उन लोगों को पहचाना न जा सके जो संभ्रांत घरों से ताल्लुक़ रखते थे और जिन्हें दिन में मज़दूरी करने में शर्म आती थी। रात को काम करने वाले ज़्यादातर लोग दक्ष नहीं थे और इसलिये काम भी अच्छा नहीं होता था। इस दोयम दर्जे के काम को दिन में गिरा दिया जाता था और दक्ष लोग इसे फिर बनाते थे। ऐसे में ये अंदाज़ा लगाना लाज़िमी है कि इससे बहुत बरबादी हुई होगी लेकिन ऐसा था नहीं। निर्माण की अनुमानित लागत पांच से दस लाख रुपये थी। नवाब इमामबाड़ा बन जाने के बाद भी इसकी साजसज्जा पर सालाना पांच हज़ार रुपये ख़र्च करते थे।
इमामबाड़ा का मुख्य सभागार 162 फुट लंबा और 53 फ़ुट चौड़ा है। सभागार की छत मेहराबदार है जो शानदार वास्तुशिल्प का उदाहरण है। 16 फुट मोटे पत्थर को संभालने के लिये कोई खंबा नही है। इस पत्थर (स्लैब) का वज़न दो लाख टन है। साभागार की छत ज़मीन से 50 फ़ुट ऊंची है।
मुख्य सभागार में अन्य दो तरफ़ अष्टकोणीय कमरे हैं जिनका व्यास क़रीब 53 फ़ुट है। पूर्व की दिशा में बने कमरों की खिड़कियां और बालकनी राजपूत शैली की हैं।

पश्चिम दिशा के कमरे को ख़रबूज़ावाला कमरा कहते हैं। ख़रबूज़े की तरह ही, इस कमरे की छत पर भी धारियां बनी हुई हैं। ऐसा माना जाता है ये कमरा एक बूढ़ी औरत के सम्मान में बनवाया गया था जो ख़रबूज़ बेचकर गुज़र बसर करती थी।

यहां आने वाले ज़्यादातर सैलानियों को ये नहीं पता कि इमामाबाड़े का धार्मिक महत्व भी है। 61 हिजरी ( सन 680) को करबला में इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम के दसवें दिन यहां शिया मुसलमान जमा होते हैं। इमाम हुसैन ने यज़ीद की नाजायज़ मांगों को मानने से इंकार कर दिया था और उसकी सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इसीलिये मोहर्रम के महीने में इमामबाड़े में धार्मिक गतिविधियां होती हैं। मोहर्रम के पहले दिन इमामबाड़े के ऊपर एक काला झंडा लगाया जाता है और दोपहर को इमामबाड़ा परिसर के आसपास बड़े-बड़े ताज़िये निकाले जाते हैं और जुलूस भी निकाला जाता है। मोहर्रम की सातवीं तारीख़ को इमाम हुसैन के अनुयायी इमामबाड़े के मैदान पर जलते कोयले पर “ या हुसैन...या हुसैन ”कहते हुए नंगे पांव चलते हैं।
इमामबाड़े के मुख्य सभागार में नवाब आसफ़ुद्दौला की क़ब्र है। असफ़उद्दौला की अंतिम इच्छा के मुताबिक़ उन्हें इमारत के भू-तल में दफ़्न किया गया था। बाद में उनकी ख़ास बेगम शम्सुन्निसा को भी वही दफ़्न किया गया था। मुख्य सभागार बड़े-बड़े शीशों, फ़ानूस, लैंप और अन्य क़ीमती चीज़ों से सुसज्जित है जो नवाब ने यूरोपीय व्यापारियों से ख़रीदी थीं

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Bhool Bhulaiya Lucknow: भूलभुलैया बड़ा इमामबाड़ा की कहानी

नवाब असफ उद दौला ने लखनऊ में बड़े इमामबाड़ा का निर्माण कराया था. उनके बारे में कहावत भी है ‘जिसको न दे मौला उसको दे असफ उद दौला ‘.
Know Curious Stories of Bara Imambara in Lucknow
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Bada Imambara Bawdi आखिरकार कब मिलेगा वह नक्शा और चाबी जिससे खुल सकते हैं करोड़ों के खजाने के राज!!

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पांच मंजिला इमारत वाली है बावड़ी
इमामबाड़े की बावड़ी पांच मंज़िला है। यह बावड़ी सीढ़ीदार कुंआ है जो पूर्व नवाबी युग की है। शाही हमाम नामक यह बाबड़ी गोमती नदी से जुड़ी है। इसमें पानी ऊपर केवल दो मंज़िले हैं, शेष तल पानी के अंदर पूरे साल डूबे रहते हैं।

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Lucknow के नवाब आसफ़ुद्दौला की इस भूलभुलैया में फसे तो घर जाने के लिए तरस जाओगे
दोस्तो आज हम आपको लखनऊ में बड़े इमामबाड़े के ऊपर बनी पूरी दुनिया मे मशहूर भूलभुलैया की सैर करा रहे हैं, यह भूलभुलैया भारत ही नही पूरी दुनिया मे मशहूर है, लाखों पर्यटक यहां आते हैं, इसका निर्माण नवाब आसफ़ुद्दौला ने कराया था जो कि बड़े इमामबाड़े के ठीक ऊपर बानी है,

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Bhool bhulaiya
भूलभुलैया Magic of Bhul Bhulaiya Lucknow एक मात्र भूल भुलैया का रहस्य Imambada

Bhool Bhulaiya Mystery

Bhool Bhulaiya is among the most famous attractions of the region. This labyrinth has intrigued architects and travellers from more than two hundred years. This structure was constructed by Asaf-Ud-Dowhala during the tough times of 1784 AD. After it was finished, it became the symbol of pride and grandeur for Lucknow. As the name suggests, this place is designed in a way that you forget paths and get lost.

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GarhKundar गढ़कुंडार के तहखाने में खजाने का रहस्य, भूलभुलैया में समा गई थी पूरी की पूरी बारात!(Ep-2)

| GarhKundar | गढ़कुंडार के इसी तहखाने में किया गया था खंगार वंश का कत्लेआम,भूलभुलैया में उलझाता किला!!

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देखा जाए तो प्राचीन किले हमेशा ही रहस्य और जिज्ञासा का विषय रहे हैं। जो बेहद रहस्यमयी है। यह एक तिलिस्मी किला है इस किले में दो फ्लोर का बेसमेंट है। बताते हैं कि इसमें इतना खजाना है कि भारत अमीर हो जाए। एक बार यहां घूमने आई एक पूरी की पूरी बरात गायब हो गई थी। गायब हुए लोगों का आज तक पता नहीं चल सका। इसके बाद नीचे जाने वाले सभी रास्तों को बंद कर दिया गया।

ये किला 5 मंजिल का है। 3 मंजिल तो ऊपर हैं, जबकि 2 मंजिल जमीन के नीचे है।ये कब बनाया गया, किसने बनवाया इसकी जानकारी उपलब्ध ही नहीं है। बताते हैं कि ये किला 1500 से 2000 साल पुराना है। यहां चंदेलों, बुंदेलों, खंगार कई शासकों का शासन रहा।गढ़कुंडार को लेकर लेखक वृंदावनलाल वर्मा ने किताब भी लिखी है। इसमें किताब में भी गढ़कुंडार के कई रहस्य दर्ज किए हैं।

घूमने आई बरात हो गई थी गायब........

आसपास के लोग बताते हैं कि काफी समय पहले यहां पास के ही गांव में एक बरात आई थी। बरात यहां किले में घूमने आई। घूमते-घूमते वे लोग बेसमेंट में चले गए।नीचे जाने पर बरात गायब हो गई। उन 50-60 लोगों का आज तक पता नहीं चल सका। इसके बाद भी कुछ इस तरह की घटनाएं हुईं। इन घटनाओं के बाद किले के नीचे जाने वाले सभी दरवाजों को बंद कर दिया गया।ये किला भूल-भुलैय्या की तरह है। अगर जानकारी न हो तो इसमें अधिक अंदर जाने पर कोई भी दिशा भूल हो सकता है। दिन में भी अंधेरा रहने के कारण दिन में भी ये किला डरावना लगता है।

किले में है खजाने का रहस्य..........

खजाने को तलाशने के चक्कर में कईयों की जानें भी गई हैं। गढ़कुंडार का किला बेहद रहस्मयी है। कहा जाता है कि इसके बेसमेंट में कई रहस्य अभी भी मौजूद हैं। दो फ्लोर बेसमेंट को बंद कर दिया गया है। खजाने का रहस्य इसी में छिपा हुआ है।इतिहासकार हरिगोविंद सिंह कुशवाहा बताते हैं कि गढ़कुंडार बेहद संपन्न और पुरानी रियासत रही है। यहां के राजाओं के पास कभी भी सोना, हीरे, जवाहरात की कमी नहीं रही। कई विदेशी ताकतों ने खजाने को लूटा। स्थानीय चोर उचक्कों ने भी खजाने को तलाशने के की कोशि‍श की।वो कहते हैं कि इस किले में इतना सोना चांदी है कि भारत जैसा देश भी अमीर हो जाए। यहां चंदेलों, बुंदेलों, खंगारों का कब्जा रहा। किले के नीचे दो मंजिला भवन है। इसी में खजाने का रहस्य है।

| Fatehpur Sikri | Buland Darwaza | वाकई अनारकली को इन्हीं दीवारों के पीछे चिनवाया था? (Ep-2)

| Fatehpur Sikri | Buland Darwaza | वाकई अनारकली को इन्हीं दीवारों के पीछे चिनवाया था? (Ep-2)

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हिंदुस्तान के इतिहास की रूह में एक नाम बसता है. अपने वक्त में गुमनाम गलियों में पैदा हुआ वो नाम देश की सबसे बड़ी मुगलिया सल्तनत की चौधराहट पर छप गया था. फिर वो नाम गुमनाम हो गया. कहते हैं कि जलालुद्दीन अकबर ने उसे आगरे की किसी दीवार में चुनवा दिया था. पर अकबर एक चीज भूल गए थे. वो इश्क की रंगत में सराबोर नाम था. चुनवा देने से उसकी खुशबू हिंदुस्तान की मिट्टी में मिल हर जगह पहुंच गई. अनारकली. जिसकी जिंदगी एक तिलिस्म की तरह थी. कहां शुरू हुई, कहां खत्म कोई नहीं जानता. पर दीन-ए-इलाही मानने वाले बादशाह से ये उम्मीद नहीं थी. बादशाह ने भी कुछ तिलिस्म छोड़ रखा था.

पाकिस्तान के पंजाब सिविल सेक्रेटरिएट के पास एक ताजमहल के रंग का मकबरा है. इसे अनारकली का मकबरा कहा जाता है. क्या बादशाह को नाचीज की मुहब्बत के आगे झुकना पड़ा था? कुछ तो कहते हैं कि बादशाह ही अनारकली से प्रेम कर बैठा था।
अनारकली को इतिहासकारों ने अपने मन से खंगाला है. सस्पेंस, थ्रिलर, तिलिस्म, सांसों में भरा इश्क, जुनून हर उस चीज से अनारकली को नवाजा गया है, जिससे जिंदगी की कहानियां बनती हैं. हिंदुस्तान भी काबिलों का देश है. हर तरह से रिसर्च की गई है. हर एंगल खंगाला गया है. तो हर तरह की कहानियां भी बनी हैं. कमाल ये है कि अनारकली के बारे में हर कोई अपनी ही कहानी को मुकम्मल मानता है-
1. अनारकली का नाम नादिरा बेगम हुआ करता था. शर्फुन्निसा भी कहा जाता था. ईरान से आई थीं. व्यापारियों के कारवां में लाहौर तक. पर खूबसूरती इतनी थी कि वहीं से हल्ला हो गया. उस वक्त बादशाहों को किसी चीज का डर नहीं रहता था. इज्जत का भी. क्योंकि जनता के मन में इज्जत की जगह डर से काम चल जाता था. तो अकबर बादशाह के दरबार में नादिरा को तलब किया गया. और वहां उसे अनारकली नाम मिला।
2. अगर ये कहें कि अनारकली सिर्फ भारत की दंतकथाओं में विराजती है तो गलत होगा. पाक अखबार डॉन के हवाले से ब्रिटिश टूरिस्ट विलियम फिंच 1608 से 1611 तक लाहौर में रहे थे. फिंच के मुताबिक अनारकली अकबर की कई पत्नियों में से एक पत्नी थी. जिससे अकबर को बेटा भी था. दानियाल शाह. बाद में अनारकली के जहांगीर से इश्क की अफवाह उड़ी. जहांगीर अकबर का बेटा था जोधाबाई से. अकबर ने इस बात पर खफा होकर अनारकली को लाहौर किले की दीवारों में चुनवा दिया. बाद में जहांगीर ने उसी जगह एक खूबसूरत मकबरा बनवाया।
3. नूर अहमद चिश्ती ने अपनी किताब तहकीकात-ए-चिश्तिया में लिखा है कि अकबर के अनारकली से बेपनाह मुहब्बत होने की वजह से बाकी रानियां चिढ़ गई थीं. इसीलिए जब अकबर डेक्कन गया तो उसके खिलाफ षड़यंत्र होने लगा. वो बीमार पड़ी और मर गई. उसकी बांदियों ने सुसाइड कर लिया. क्योंकि अकबर की मुहब्बत का डर था।
4. सैयद अब्दुल लतीफ ने अपनी किताब तारीख-ए-लाहौर में लिखा है कि जहांगीर से इश्क के चलते ही अनारकली की जान गई. वो अकबर की बीवी थी. जहांगीर ने उसकी कब्र पर लिखवाया कि अगर मैं अपनी महबूबा को एक बार भी पकड़ सकता तो अल्लाह का शुक्रिया करता. कयामत तक. उस कब्र पर 1599 और 1615 साल की तारीखें हैं. कहते हैं कि मरने और कब्र के पूरे होने की तारीखें हैं.

5. कन्हैया लाल ने अपनी किताब तारीख-ए-लाहौर में लिखा है कि अनारकली की बीमारी से ही मौत हुई थी. बाद में अकबर ने मकबरा बनवाया. सिख राजाओं ने उसे तोड़वा दिया. अंग्रेजों ने चर्च बनवा दिया उसका।
7. एक दूर की कहानी ये भी है. कि सलीम ने अनारकली से बाद में निकाह कर लिया था. और उसे नाम दिया नूरजहां. नूरजहां भी ईरान के मिर्जा गयास बेग की बेटी थी. नूरजहां का जहांगीर के दिमाग पर पूरा काबू था.

8. इन सबमें सबसे खतरनाक वो कहानी है जिसमें अकबर ने अपनी बीवी अनारकली को पर्दे के पीछे से सलीम को देख मुस्कुराता हुआ देखा था. और इसी बात पर उसे दीवार में दफन कर दिया।

Legend Of Bara Imambara Lucknow - Bhool Bhulaiya Lucknow Video In Hindi || भूलभुलैया बड़ा इमामबाड़ा

Bhool Bhulaiya Lucknow Video
Bara Imambara Lucknow

Bara Imambara, also known as Asfi Mosque is an imambara complex in Lucknow, India built by Asaf-ud-Daula, Nawab of Awadh in 1784. Construction of Bara Imambara was started in 1784, a year of a devastating famine, and one of Asaf-ud-Daula's objectives in embarking on this grandiose project was to provide employment for people in the region for almost a decade while the famine lasted.
The architecture of the complex reflects the maturation of ornamented Mughal design, namely the Badshahi Mosque - it is one of the last major projects not incorporating any European elements or the use of iron.

The main imambara consists of a large vaulted central chamber containing the tomb of Asaf-ud-Daula.
At 50 by 16 meters and over 15 meters tall, it has no beams supporting the ceiling and is one of the largest such arched constructions in the world. There are eight surrounding chambers built to different roof heights, permitting the space above these to be reconstructed as a three-dimensional labyrinth with passages interconnecting with each other through 489 identical doorways. This part of the building, and often the whole complex, may be referred to as the Bhulbhulaiya. Known as a popular attraction, it is possibly the only existing maze in India and came about unintentionally to support the weight of the building which is constructed on marshy land. Asaf-ud-Daula also erected the 18 meter (59 foot) high Roomi Darwaza, just outside.

बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ की एक ऐतिहासिक धरोहर है इसे भूल भुलैया भी कहते हैं इसको अवध के नवाब आसफ उद दौरानी 1784 ने बनवाया था इसे आसिफी इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है | इस इमामबाड़े का निर्माण आसफ़उद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत करवाया था। यह विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। अनुमानतः इसे बनाने में उस ज़माने में पाँच से दस लाख रुपए की लागत आई थी। यही नहीं, इस इमारत के पूरा होने के बाद भी नवाब इसकी साज सज्जा पर ही चार से पाँच लाख रुपए सालाना खर्च करते थे | इसमें विश्व-प्रसिद्ध भूलभुलैया बनी है, जो अनचाहे प्रवेश करने वाले को रास्ता भुला कर आने से रोकती थी। इसका निर्माण नवाब ने राज्य में पड़े दुर्भिक्ष से निबटने हेतु किया था। इसमें एक गहरा कुँआ भी है। एक कहावत है के जिसे न दे मोला उसे दे आसफूउद्दौला

Bhool Bhulaiyaa Lucknow | Bara Imambara | भूल भुलैया लखनऊ | Part - 1 | Lucknow Utter Pradesh

Bhool Bhulaiyaa Lucknow | Bara Imambara | भूल भुलैया लखनऊ | Part - 1 | Lucknow Utter Pradesh

इस वीडियो में हमने भूल भुलैया दिखाया है, जिसे बड़ा इमामबड़ा के नाम से भी जाना जाता है । यह एक ऐसा जगह है, जहाँ पर कोई इंसान इसे अकेले नही घूूम सकता ।


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Bhool Bhulaiya at Bara Imambara Lucknow/ भूलभुलैया लखनऊ बड़ा इमामबाड़ा. Vlog-2.

This is the 2nd video of my Lucknow series. Historically, Lucknow was the capital of the Awadh region, controlled by the Delhi Sultanate and later the Mughal Empire. In this video we have explored Bhool Bhulaiya at Bara Imambara. Bhool Bhulaiya is one of the largest Labyrinth standing in Asia.

I have kept this Bhool Bhilaiya raw with minimum editing just to give you an original feel of this fabulous Labyrinth of Bara Imambara at Lucknow
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फरहत बख्श कोठी का इतिहास ;--

फरहत बख्श कोठी का मूल नाम “मार्टिन विला” था। इसका निर्माण मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन ने सन् 1781 में करवाया था। यह इंडो – फ्रेंच वास्तुकला का अद्भुत नमूना पेश करता है। कहा जाता है कि यह उनका निवास स्थान हुआ करता था। यह दोमंजिला इमारत थी, जिसका निचला हिस्सा गोमती नदी को छूता था, जिसकी वज़ह से बरसात के मौसम में नीचे का हिस्सा पानी में डूब जाया करता था। इसके अंदर हवा का संचालन और अंदर के माहौल को ठंडा रखने के लिए गोमती किनारे बनवाया गया था। ऊपरी मंजिल में एक बड़ा हॉल था, जहां 4000 किताबें अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा की रखी गई थी। साथ ही 500 हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ भी संकलित थीं। क्लाउड मार्टिन को पढ़ने बहुत शौक था। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनको ला मार्टीनियर में दफनाया जाए। और हुआ भी ऐसा ही।

मान्यता है कि मई 1781 में ही जब यह इमारत पूर्ण होने वाली थी, तभी बनारस के राजा छेत सिंह ने इसपर आक्रमण कर दिया और किसी तरह इसकी हिफाज़त हो सकी। युद्ध के उपरांत क्लाउड मार्टिन ने इसके तीनों तरफ बड़ी खाई बनवाई और चौथा भाग जो गोमती से जुड़ा था, उसपर पुल बनवाया। यही से अंदर प्रवेश का द्वार बनवाया। अपनी अंतिम सांस तक क्लाउड मार्टिन इसी इमारत में रहे।

नवाब द्वारा खरीदा जाना:---

क्लाउड मार्टिन सम्पूर्ण जीवन अविवाहित रहे इसलिए उनकी मृत्यु के पश्चात इस विला का कोई भी वारिस नहीं था। अतः इस इमारत को बेचने के लिए बोली लगाने का आयोजन किया गया, जहां नवाब सादत अली खान को बोली में मात देते हुए एक स्पेनिश व्यक्ति, जोसेफ क्वेरोस ने इस इमारत को अपने नाम कर लिया। उन्होंने इसको 40 हजार रूपए में खरीदा।

कुछ समय बाद नवाब सादत अली खान की तबीयत थोड़ी बिगड़ी और हवा पानी बदलने के लिए वो यहां रहने के लिए आए। यहां की आबोहवा और खुशनुमा माहौल ने जल्दी ही नवाब साहब को ठीक कर दिया। इसके पश्चात उन्होंने जोसेफ क्वेरोस पर थोड़ा दबाव डाला और इस इमारत को उनसे खरीद कर अपने नाम कर लिया। ये सादत अली खान ही थे जिन्होंने इस इमारत का नाम बदलकर “फरहत बख्श कोठी” ( बेस्टोअर ऑफ हैप्पीनेस) रखा। नवाब सादत अली खान से लेकर वाजिद अली शाह से पहले तक के सभी नवाब और अवध के राजाओं का यह निवास स्थान हुआ करता था। वाजिद अली शाह ने अपने निवास स्थान के रूप में कैसरबाग महल को चुना।

संशोधन का स्वरूप बना छत्तर मंजिल:--

फरहत बख्श कोठी में परिवर्तन किए गए और इमारत का विस्तार किया गया। इसका विस्तार स्वरूप ही छत्तर मंजिल बना। सादत अली खान (1798-1814) ने ही इसके विस्तार स्वरूप का निर्माण अपनी मां “छत्तर कुंवर” के नाम पर करवाना आरंभ करवाया, परन्तु उनकी मृत्यु के उपरांत इसके निर्माण का जिम्मा उनके पुत्र और अवध के पहले राजा गाज़ी उद दीन हैदर (1814-1827) ने लिया और इमारत के निर्माण को अंतिम रूप दिया। बाद में नसीर उद दीन हैदर (1827-1837) ने इसको और भी अलंकृत किया। इसके किनारे मूर्तियों और फूलों की क्यारियां उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती थी जिसे गुलिस्तान-ए-इरम (गार्डेन ऑफ पैराडाइज) के नाम से जाना जाता था।

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बड़ा इमामबाड़ा|| भूलभुलैया || LUCKNOW || Episode -3|| tourist guide | Bhool Bhulaiya in Lucknow ||

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Bhool Bhulaiya Lucknow | भूल भुलैयाँ लखनऊ | Bada Imambara Lucknow

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Bhool bhulaiya is the famous historical tourist place in lucknow. It is also known as bada imambara because its built inside in imambara. This bhul bhoolaiya about 7 kilometer from charbagh railway station.
This bhool bhulaiya built by the Awadh Nawab Asaf-Ud-Daula in 1784.

भूलभुलैया लखनऊ का प्रसिद्ध ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है। इसे बड़ा इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह बड़े इमामबाड़े के अन्‍दर बनी हुई है। यह भूलभुलैया चारबाग रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस भूल भुलैया को अवध के नवाब आसफ-उद-दौला ने 1784 में बनवाया था।

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जाने लखनऊ के भुलभुलैया के बारे में ! Fact about Bada Imambara | Lucknow ka Bhool Bhulaiya |

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In this video I explained about Bara Imambara, Lucknow, to know Who Built Bara Imambara, why built Bara Imambara, Intreasting fact about Bara Imambara, watch the video till the end. It’s called also as bhool bhuliaya

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आज की इस विडियो में हम जानेंगे लखनऊ की शान बरा इमामबारा के बारे में जिसे भूलभुलैया भी कहते है, जैसे की क्यों बनाया गया बार इमामबारा, किसने बनवाया और मजेदार रोचक तथ्य, तो विडियो अंत तक जरुर देखना

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| Chaturbhuj Bhulbhuliya | 400 साल पहले कारीगरों ने बनवाई ऐसी भूलभुलैया जिससे निकलना नामुमकिन सा है!

| Chaturbhuj Bhulbhuliya | 400 साल पहले कारीगरों ने बनवाई ऐसी भूलभुलैया जिससे निकलना नामुमकिन सा है! @Gyanvikvlogs

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मंदिर का निर्माण मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान ओरछा राज्य के बुंदेला राजपूतों द्वारा किया गया था । इसका निर्माण मधुकर शाह द्वारा शुरू किया गया था और १६वीं शताब्दी में उनके पुत्र वीर सिंह देव द्वारा पूरा किया गया था। मधुकर शाह ने अपनी पत्नी रानी गणेशकुवारी के लिए मंदिर बनवाया।

एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार, मंदिर का निर्माण तब किया गया था जब रानी ने भगवान राम द्वारा सपने देखने के लिए उन्हें अपने लिए एक मंदिर बनाने का निर्देश दिया था; मधुकर शाह जहां कृष्ण के भक्त थे , वहीं उनकी पत्नी का समर्पण राम के प्रति था। चतुर्भुज मंदिर के निर्माण की मंजूरी के बाद, रानी भगवान राम की एक छवि लेने के लिए अयोध्या गईं, जिसे उनके नए मंदिर में स्थापित किया जाना था। जब वह राम की छवि के साथ अयोध्या से वापस आई, तो शुरू में उसने मूर्ति को अपने महल में रखा, जिसे रानी महल कहा जाता है, क्योंकि चतुर्भुज मंदिर अभी भी निर्माणाधीन था। हालाँकि, वह इस आदेश से अनभिज्ञ थी कि किसी मंदिर में दी जाने वाली छवि को महल में नहीं रखा जा सकता है। एक बार जब मंदिर का निर्माण पूरा हो गया और भगवान की मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में स्थापना के लिए ले जाना पड़ा, तो उसने महल से स्थानांतरित करने से इनकार कर दिया। इसलिए, चतुर्भुज मंदिर के बजाय, राम की मूर्ति महल में बनी रही, जबकि चतुर्भुज मंदिर अपने गर्भगृह में मूर्ति के बिना रहा। जैसा कि महल में राम की पूजा की जाती थी, इसे राम राजा मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया था ; यह देश का एकमात्र मंदिर है जहां राम को राजा के रूप में पूजा जाता है।

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Lucknow, The City of Nawabs

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About this video -


Bara Imambara, also known as Asfi Imambara is an imambara complex in Lucknow, India built by Asaf-ud-Daula, Nawab of Awadh in 1784. Bara means big. This imambara is the second largest after the Nizamat Imambara
The building also includes the large Asfi mosque, the Bhul-bhulaiya (the labyrinth), and Bowli, a step well with running water. Two imposing gateways lead to the main hall. It is said that there are 1024 ways to reach the terrace but only two to come back first gate or the last gate. It is an accidental architecture.
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लखनऊ भूल भुलैया स्टोरी
लखनऊ की भूलभुलैया
लखनऊ का भूल भुलैया किसने बनवाया था
बड़ा इमामबाड़ा किस पत्थर से बना है

लखनऊ में भूल भुलैया कहां है
भूल भुलैया फोटो
लखनऊ का इमामबाड़ा किसने बनवाया था
भूलभुलैया का इतिहास
भूल भुलैया भूल भुलैया
छोटा इमामबाड़ा कहां है
इमामबाड़ा का अर्थ
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Bhool bhulaiya at Orchha ! Ep.4 Place not to be missed in Orchha

Haanji... ???? Fir se free me ghoomna hai???
chalo is baar aapko dikhaate hai Bhool Bhulaiya... wo bhi us zamaane ki.. Maze kariye aur dekhiye India ka Bhokaal..
These architectural wonders.. Hundreds of years back.. some marvels created.. and we are Lucky to appreciate and feel this wonderful Buildings...
In love with Our Country ... Once again❤
So... Here we Go... Second last ep. to our Orchha trip... Detailed hai... Have Fun... Iske baad bhi gyaan chaahiye??? Contact us????????????
See yaa... next Saturday... With Ram Raja temple and some street food????????
himmat se kaam lijiye aur enjoy kariyr yr Vlog...???? Travel Baniya????

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